Monday, December 14, 2009

"ये किस मक़ाम पे मेरी हयात लाई मुझे,
 जो मुस्कुराना भी चाहूँ तो अश्क़ बहते हैं"

Friday, December 4, 2009

तुम दूर न जाया करो...........


कुछ कहना है तुमसे


अगर इजाज़त हो तुम्हारी.........?


तुम दूर न जाया करो.........


मेरी तनहाइयाँ गहरा जाती हैं
सोच पर यादों के पहरे बैठ जाते हैं
आँखों  में तुम्हारे इंतज़ार के चिराग 
बुझने का नाम ही नहीं लेते 
रातें इस क़दर सियाह हो जाती हैं 
के सुबह की किरने भी फीकी लगती हैं
सूरज भी मद्धम सा लगता है 
और चाँद बेनूर सा नज़र आता है
सुबह की ताजगी छिन जाती है 
और शामों की दिलकशी खो जाती है
तुम दूर न जाया करो...........


सब कुछ पहले जैसा होता है
बस तुम्हारी कमी बहुत सताती है
मुस्कराहट तो होती है चेहरे पर
मगर ख़ुशी रूठ जाती
धड़कने खामोश रहती हैं
शोर नहीं करतीं हमेशा की तरह 
साँसे तो होती हैं 
मगर साँसों की लय मद्धम पड़ जाती है 
जान तो होती है 
मगर ज़िन्दगी नहीं होती
तुम दूर न जाया करो..........


ओस की बूँदें पानी सी लगती हैं
फूलों पर गिरती तो हैं
मगर मायूस सी ठहर जाती हैं
मुस्कुराती नहीं
सहमी सी रुकी रहती हैं फूलों पर कहीं
हवाएं गुनगुनाती नहीं
तुम्हारी आवाज़ सुनने को बैचैन हों गोया  
तुम दूर न जाया करो.........


अपने इर्द गिर्द हर एक शख्स
मायूस सा नज़र आता है
पर ये हकीक़त नहीं है
हकीक़त तो ये है
के ये मायूसी, ये वीरानी
मेरे ही अन्दर कहीं छुपी बैठी है
जो तुम्हारे जाने से
मेरे दिल-ओ-दिमाघ पर तारी हो जाती है
दुनिया की भीड़ में अकेली हो जाती हूँ मैं तुम्हारे जाने से
तुम दूर न जाया करो..........


चहकने दो सुबहों को,
संवरने दो  शामों को,
सांसो की लय पर गुनगुनाने दो ज़िन्दगी को,
लहलहाने दो पत्तो को,
इठलाने दो शबनम की बूंदों को अधखिले फूलों पर,
खेलने दो हवाओं को खलाओं की गोद में,
बख्श  दो ज़िन्दगी हर उस शय को
जिनकी खुशियाँ तुमसे वाबस्ता हैं
इसी लिए कहती हूँ
तुम दूर न जाया कर...........
तुम दूर न जाया करो..........

Thursday, December 3, 2009

"मेरे मिज़ाज की तल्खी उन्हें नहीं भाती
 मैं उनसे प्यार से बोलूं तो लोग जलते हैं
 अब तो तन्हाई में रोते हैं सुबह-शाम वफ़ा
 घर से बहार मगर हँसते हुए निकलते हैं"

Wednesday, December 2, 2009

काश वो मेरी सहेली होती...........



काश वो मेरी सहेली होती...........
जिसके  सीने से लिपट कर
मैं अपनी खुशियों को
दोगुना कर सकती
जिससे अपनी सारी छोटी-बड़ी
खुशियाँ बाँट सकती
जिसके साथ हंसी-ठिठोले कर   सकती
उसे चिढाती, हंसाती
जब वो चिढती तो उसके  
गले से  लिपट जाती
कभी खुद रोती
कभी उसे रुलाती
 






और जब कभी मन उदास होता तो
उसके आँचल में सिमट जाती
और वो
मेरे कुछ कहने से पहले ही
मेरी हर बात समझ जाती
मेरे रोने से पहले ही
मेरी हर तकलीफ उसे दिख जाती
काश उसे मेरे दर्द का अंदाज़ा होता
और वो मेरे ज़ख्म देख पाती
मुझे समझ पाती
मुझे समझा पाती
मुझसे यू नाराज़  न हुआ करती
मुझे यू रुलाया न करती
काश वो मेरे मन में झाँक पाती
मुझे समझ पाती


दुःख में सहारा देती
और सुख में गले लगाती
समझती, समझाती
बहलाती, और अपना हक जताती
मेरे कुछ कहने से पहले ही
वो सब कुछ समझ जाती
काश वो मुझे समझ पाती
और मेरी माँ होकर भी  
मेरी सहेली बन पाती........







बहुत चाहा मैंने 
पर वो मेरी माँ ही रही 
सहेली न बन सकी
मैं उसे समझ न पाई
और वो भी मुझे समझ न सकी........






काश वो मेरी सहेली होती.......


पर वो बहुत प्यारी है मुझे
और ज़िन्दगी है मेरी
अँधेरी राहों पर रौशनी है मेरी 
सहारा है जीने का
हर ख़ुशी है मेरी
वो माँ है मेरी .......
बहुत दिल दुखती हूँ मैं जाने-अनजाने उसका
क़दमों में जिसके जन्नत है मेरी
या रब मुझे माफ़ करदे 
मेरी माँ की उम्र दराज़ करदे ....(आमीन)