Friday, March 5, 2010

ज़िन्दगी का तसव्वुर तेरे बग़ैर





कैसी होगी ज़िन्दगी तेरे बग़ैर........?
एक साथी तो होगा पर,
हमसफ़र न बन पायेगा.......
एक मकान तो होगा,
पर शायद घर न बन पायेगा.......
बचपन भी होगा,
पर क्या तुम्हारे जितना प्यार
कोई और लुटा पायेगा उस बचपन पर..........?
आँगन तो होगा मगर,
तुहरी आवाज़ की चेह्क न होगी.........
सूना न होगा वो आँगन तुम्हारे बग़ैर.......?
फूल तो होंगे,
पर खुशबू न होगी......
तुहरी ही खुशबू से तो महकते हैं वो.....
सूरज भी निकलेगा रोज़ की तरह,
पर क्या मेरे दिन की शुरुआत हो सकेगी,
तुम्हारी आवाज़ सुने बग़ैर.........?
रात हो सकेगी,
तुमसे बात किये बग़ैर........?
ज़िन्दगी तो होगी,
मगर क्या उसमे खुशिया भी होंगी.......?
यूं तो सब कुछ होगा ज़िन्दगी में,
पर क्या ज़िन्दगी होगी तुम्हारे बग़ैर.........?
अधूरी न होगी हर ख़ुशी.......?
हर मुस्कराहट,
हर चाहत,
क्या अधूरी न होगी मैं तुम्हारे बग़ैर.........?
सिहर उठती हूँ मैं इस ख़याल से भी,
के कैसी होगी ज़िन्दगी तुम्हारे बग़ैर .........
अधूरा न होगा सब कुछ तुम्हारे बग़ैर.......?

ख़दीजा अशरफ

एक अधूरा सा एहसास



आज दिन अधूरा है
शब् अधूरी सी
चाँद अधूरा है
काएनात अधूरी सी
अधूरे रास्ते हैं
मंजिलें अधूरी सी
मैं अधूरी हूँ
ज़िन्दगी अधूरी सी........!

अधूरे लफ्ज़ हैं
दास्ताँ अधूरी सी
अधूरा आसमा
ज़मी अधूरी सी
अधूरे गाँव हैं
अंगनाईयां अधूरी सी
मैं अधूरी हूँ
ज़िन्दगी अधूरी सी........!


अधूरे बचपन हैं
जवानियाँ अधूरी सी
अधूरे जश्न हैं
तन्हाईयाँ अधूरी सी
अधूरे जिस्म हैं
परछाइयाँ अधूरी सी
मैं अधूरी हूँ
ज़िन्दगी अधूरी सी.........!


अधूरे बाग़ हैं
फुलवारिया अधूरी सी
अधूरे राज़ हैं
पोशीदगी अधूरी सी
अधूरे रंज हैं
संजीदगी अधूरी सी
मैं अधूरी हूँ
ज़िन्दगी अधूरी सी........!
अधूरी खुशियाँ हैं
गम्गीनियाँ अधूरी सी
अधूरा रंग है
रंगीनियाँ अधूरी सी
अधूरी जीत है
नाकामियां अधूरी सी
मैं अधूरी हूँ
ज़िन्दगी अधूरी सी........!


अधूरी बातें हैं
खामोशियाँ अधूरी सी
अधूरा होश है
मदहोशियाँ अधूरी सी
अधूरी नजदीकियां हैं
दूरियां अधूरी सी
मैं अधूरी हूँ
ज़िन्दगी अधूरी सी........!

कुछ लफ्ज़ जो दिल से निकले

है शौक़ बगुत लिखूं उस पर मैं कोई नग़मा

लिखने को मगर साज़-ओ- सामान नहीं मिलता

या रब तेरी दुनिया में कैसा ये क़ेहेर टूटा
इंसान के जामे में इंसान नहीं मिलता


ए काश लिखूं खुद ही, और खुद न समझ पाऊं
ऐसा कोई पेचीदा उन्वान नहीं मिलता


वो सुन के जिसे एकदम बेचैन से हो जाएँ
कहने को कोई ऐसा अशआर नहीं मिलता


तकसीम किया मुझको उसने कुछ इस तरह से
हैं जिस्म-ओ-दिल तो अपने पर एहसास नहीं मिलता


बेजान सी एक शै हूँ बाज़ार में खड़ी हूँ
बिकने को तो बिक जाऊं खरीदार नहीं मिलता


दौर-ए-जदीद है ये दामन बचा के चलना
फैशन परस्त लोगों में किरदार नहीं मिलता


हर दिन यही ख़बर है इतने मरे यहाँ पर
खूं रेज़ी न हो जिसमे वो अखबार नहीं मिलता


आओ जो मेरी कब्र पे तो अश्क न बहाना
रोने से मरने वाले को करार नहीं मिलता


हो और सितम किस पर है कौन सिवा तेरे
उनको वफ़ा तुझसा कोई नादान नहीं मिलता

Thursday, February 4, 2010

जो कभी ना सुलझी वो पहेली

क्या नज़रें मिलने से प्यार हो जाता है.........?
क्या साथ वक़्त बिताने से दो लोग करीब आ जाते हैं.........?
क्या मिलना, बात करना, साथ रहना ज़रूरी है.......?
पता नहीं..............


कभी कभी किसी की एक नज़र वो कर जाती है
जो बरसों की पहचान भी नहीं कर पाती.........
साथ रह कर भी अजनबियों की तरह रहने वाले
आज इतने करीब आ चुके हैं के दूर रहना मुश्किल हैं
वो अचानक नज़रों का मिलना.......
एक दुसरे को सवालिया नज़रों से देखते रहना........
और फिर...........
एक नयी कहानी की शुरुआत.........
कब, कहाँ,क्यूँ,कैसे.........
पता नहीं....