Wednesday, October 28, 2009

एक नाकाम कोशिश...........

बात नाज़ुक है मेरे दोस्त बताऊँ कैसे
अपनी उल्फत का यकी उसको दिलाऊँ कैसे

खुश्क कलियाँ तो किताबों से हटा दीं मैंने
उसकी यादों को मगर दिल से हटाऊँ कैसे

उसकी तस्वीर जो घर में थी जला दी मैंने
पर वो तस्वीर जो दिल में है जलाऊँ कैसे

भूल जाने की उसे हमने क़सम खा ली है
वक्त किस दर्जा लगेगा ये बताऊँ कैसे

जिससे हमदर्दी, वफ़ा, उन्स मिला था मुझको
उसकी नफरत का यकी ख़ुद को दिलाऊँ कैसे

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