"उनको चाहा था बस इतनी सी खता थी अपनी वो जुदा हमसे हों एक ये भी सजा थी अपनी मेरे होंठों पे तबस्सुम जिन्हें मंज़ूर न था उनके पहलू में क़ज़ा आये दुआ थी अपनी "
bahut khoob ... kya likha hai ... अगर जीभर के देखूँ तो, वो कहते क्या जमाना है , कोई बहसी कोई रमता, कोई कहता दीवाना है | मैं उनको प्यार से देखूँ, तो बोलो क्या बुरा करता , कि वो तो गैर के संग है, मुझे इतना बताना है |
अपनी ही तलाश में गुम हूँ........
कहने को तो मैं एक न्यूज़ पेपर में काम करती हूँ मगर पत्रकार नहीं हूँ....
पर लिखने का शौक़ मुझे ब्लॉग की दुनिया में ले आया...
जो महसूस करती हूँ उसे पन्नो पर उतार देती हूँ, ज़िन्दगी में बहुत कुछ खोया है और बहुत कुछ खोने की कगार पर हूँ....पर नाउम्मीद नहीं हूँ!
मेरी तलाश जरी है और हमेशा रहेगी ...मेरे पढ़ने वालों की दुआओं में जगह चाहती हूँ ,न जाने कब किसकी दुआ लग जाये.....!!!!!
ख़ूबसूरत शेर....
ReplyDeletebahut khoob ... kya likha hai ...
ReplyDeleteअगर जीभर के देखूँ तो, वो कहते क्या जमाना है ,
कोई बहसी कोई रमता, कोई कहता दीवाना है |
मैं उनको प्यार से देखूँ, तो बोलो क्या बुरा करता ,
कि वो तो गैर के संग है, मुझे इतना बताना है |
khadija ji,
ReplyDeletebehatreen ashaar hai !
blog-jagat me swagat hai aapka !
anand v. joha
Bauht umda shair hai.. par
ReplyDeleteKaza ki aarzu, gair rasmi tohmat hai yeh
khud se khud ki nagawar ek sazish hai yeh...
koi soo tujhe chhoo bhee na kasegi raazish
itna eaitbaar to mujhe mere khuda par hai.
not " kasegi" its sakegi.. pls correct
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