Wednesday, December 2, 2009

काश वो मेरी सहेली होती...........



काश वो मेरी सहेली होती...........
जिसके  सीने से लिपट कर
मैं अपनी खुशियों को
दोगुना कर सकती
जिससे अपनी सारी छोटी-बड़ी
खुशियाँ बाँट सकती
जिसके साथ हंसी-ठिठोले कर   सकती
उसे चिढाती, हंसाती
जब वो चिढती तो उसके  
गले से  लिपट जाती
कभी खुद रोती
कभी उसे रुलाती
 






और जब कभी मन उदास होता तो
उसके आँचल में सिमट जाती
और वो
मेरे कुछ कहने से पहले ही
मेरी हर बात समझ जाती
मेरे रोने से पहले ही
मेरी हर तकलीफ उसे दिख जाती
काश उसे मेरे दर्द का अंदाज़ा होता
और वो मेरे ज़ख्म देख पाती
मुझे समझ पाती
मुझे समझा पाती
मुझसे यू नाराज़  न हुआ करती
मुझे यू रुलाया न करती
काश वो मेरे मन में झाँक पाती
मुझे समझ पाती


दुःख में सहारा देती
और सुख में गले लगाती
समझती, समझाती
बहलाती, और अपना हक जताती
मेरे कुछ कहने से पहले ही
वो सब कुछ समझ जाती
काश वो मुझे समझ पाती
और मेरी माँ होकर भी  
मेरी सहेली बन पाती........







बहुत चाहा मैंने 
पर वो मेरी माँ ही रही 
सहेली न बन सकी
मैं उसे समझ न पाई
और वो भी मुझे समझ न सकी........






काश वो मेरी सहेली होती.......


पर वो बहुत प्यारी है मुझे
और ज़िन्दगी है मेरी
अँधेरी राहों पर रौशनी है मेरी 
सहारा है जीने का
हर ख़ुशी है मेरी
वो माँ है मेरी .......
बहुत दिल दुखती हूँ मैं जाने-अनजाने उसका
क़दमों में जिसके जन्नत है मेरी
या रब मुझे माफ़ करदे 
मेरी माँ की उम्र दराज़ करदे ....(आमीन)  

2 comments:

  1. अपनी माँ से बेहद प्यार करती है आप...दिख रहा है।

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  2. khub likha hai khadija madam, aaein ab kaam karein tawajooh ke saath

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