कुछ कहना है तुमसे
अगर इजाज़त हो तुम्हारी.........?
तुम दूर न जाया करो.........
मेरी तनहाइयाँ गहरा जाती हैं
सोच पर यादों के पहरे बैठ जाते हैं
आँखों में तुम्हारे इंतज़ार के चिराग
बुझने का नाम ही नहीं लेते
रातें इस क़दर सियाह हो जाती हैं
के सुबह की किरने भी फीकी लगती हैं
सूरज भी मद्धम सा लगता है
और चाँद बेनूर सा नज़र आता है
सुबह की ताजगी छिन जाती है
और शामों की दिलकशी खो जाती है
तुम दूर न जाया करो...........
सब कुछ पहले जैसा होता है
बस तुम्हारी कमी बहुत सताती है
मुस्कराहट तो होती है चेहरे पर
मगर ख़ुशी रूठ जाती
धड़कने खामोश रहती हैं
शोर नहीं करतीं हमेशा की तरह
साँसे तो होती हैं
मगर साँसों की लय मद्धम पड़ जाती है
जान तो होती है
मगर ज़िन्दगी नहीं होती
तुम दूर न जाया करो..........
ओस की बूँदें पानी सी लगती हैं
फूलों पर गिरती तो हैं
मगर मायूस सी ठहर जाती हैं
मुस्कुराती नहीं
सहमी सी रुकी रहती हैं फूलों पर कहीं
हवाएं गुनगुनाती नहीं
तुम्हारी आवाज़ सुनने को बैचैन हों गोया
तुम दूर न जाया करो.........
अपने इर्द गिर्द हर एक शख्स
मायूस सा नज़र आता है
पर ये हकीक़त नहीं है
हकीक़त तो ये है
के ये मायूसी, ये वीरानी
मेरे ही अन्दर कहीं छुपी बैठी है
जो तुम्हारे जाने से
मेरे दिल-ओ-दिमाघ पर तारी हो जाती है
दुनिया की भीड़ में अकेली हो जाती हूँ मैं तुम्हारे जाने से
तुम दूर न जाया करो..........
चहकने दो सुबहों को,
संवरने दो शामों को,
सांसो की लय पर गुनगुनाने दो ज़िन्दगी को,
लहलहाने दो पत्तो को,
इठलाने दो शबनम की बूंदों को अधखिले फूलों पर,
खेलने दो हवाओं को खलाओं की गोद में,
बख्श दो ज़िन्दगी हर उस शय को
जिनकी खुशियाँ तुमसे वाबस्ता हैं
इसी लिए कहती हूँ
तुम दूर न जाया कर...........
तुम दूर न जाया करो..........
Friday, December 4, 2009
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खदीजा जी आपकी इस कविता को पढ़कर निशब्द हो गई हूँ..कितनी दर्द है इसमें..
ReplyDeleteसूरज भी मद्धम सा लगता है
और चाँद बेनूर सा नज़र आता है
सुबह की ताजगी छिन जाती है
और शामों की दिलकशी खो जाती है
तुम दूर न जाया करो...
ये शब्द जुदाई का ग़म बखूबी बयां कर रहे है।
शुक्रिया..