जिंदगी उस नदी की तरह है जो ठहराव की तलाश में बहती जा रही है ...
कभी गिरती, कभी संभलती ... पथरीले इलाकों से गुज़रती, चोट खाती या जबरन मुस्कुराती ... ये वो नदी है जो ठहर कर कुछ देर सांस लेना चाहती है पर हक़ीक़त से अंजान है कि नदियों की तक़दीर में ठहराव नही, बहाव होता है ....! जब जहां से गुज़रती हैं, कभी इनकी रफ़्तार रास्ते में आने वाली चीज़ों का रुख बादल देती है तो कभी वो चीज़ें इनके बहाव की रफ़्तार को काट कर इनका रुख मोड़ देती हैं....पर नतीजा तो एक ही है, बहना ... बस बहते जाना ! शायद ज़िंदगी से अब बस सुकून की चाहत है, पर क्या सुकून की चाहत में मुझे यूंही बहते जाना होगा कुछ वक्त और ... ... ..???
कभी कुछ छोटे और अंजान झरने इसमें आकर मिल जाते हैं तो कभी ये गहरे और बड़े समंदर में जा मिलती हैं .... हाँ समंदर में मिलने के बाद इसकी रफ़्तार में थोड़ी कमी ज़रूर आती है पर ठहराव नही...! अपने अंजाम से बेखबर बस बहती जा रही है... क्या नदियों की क़िस्मत में ठहराव नही है ....?
क्या इन्हें थक कर आराम करने का हक नहीं...?
क्या इन्हें ठहरने का हक नहीं...?
कब तक....आख़िर कब तक यूं अंजान सफर जारी रहेगा ...?
सुकून की तलाश जाइज़ नहीं.....?
क्या ठहराव की ख्वाहिश जाइज़ नहीं?
इन्ही सवालों के ढूँढने में मेरी आधी ज़िंदगी निकल गयी..... उम्मीद है बाक़ी की आधी इस तरह बर्बाद ना हो!!